तलाश-ओ-फ़िक्र में नज़रों की हैरानी नहीं जाती जो मंज़िल से गुज़रता हूँ वो पहचानी नहीं जाती अजब दस्तूर-ए-आलम है अजब इंसाफ़-ए-दुनिया है सलीब-ओ-दार पर हक़ बात भी मानी नहीं जाती ज़माने की सदाएँ आप तो पहचान लेते हैं मिरे ही दर्द की आवाज़ पहचानी नहीं जाती मता-ए-ज़िंदगी लुट जाएगी मालूम है लेकिन हवस वालों की हिर्स-ए-दौलत-ए-फ़ानी नहीं जाती हुए क़स्र-ओ-महल ता'मीर जिन के दम से दुनिया में उन्हीं की आज देखो ख़ाना-वीरानी नहीं जाती ज़रूरी है कोई हल ढूँढना तदबीर से इस का परेशानी के कहने से परेशानी नहीं जाती 'नज़र' ख़ुद-ए'तिमादी इक दलील-ए-कामयाबी है कभी ख़ाली किसी की सई-ए-इम्कानी नहीं जाती