तड़पती बिजलियों से तीरा-सामानी नहीं जाती चमन इस तरह उजड़ा है कि वीरानी नहीं जाती ज़रूरत है किसी मूसा की फिर ऐमन की वादी में वो यूँ आवाज़ देते हैं कि पहचानी नहीं जाती तिरी तस्वीर क्या देखी कि ख़ुद तस्वीर बन बैठे हमारे दीदा-ए-हैराँ की हैरानी नहीं जाती नए साग़र नया साक़ी नया अंदाज़-ए-मय-ख़ाना क़दामत की यहाँ अब बात कुछ मानी नहीं जाती ब-जुज़ तख़रीब इंसाँ की समझ में कुछ नहीं आता ज़मीं से इस लिए तख़रीब-सामानी नहीं जाती ख़ुशामद की हवा में फूल सब चुनने लगे 'साक़ी' दर-ए-गुलचीं की तुम से ख़ाक भी छानी नहीं जाती