तहय्युरात का आईना तेरी कम-सुख़नी पड़ी हैं मुझ को मुसलसल जो आफ़तें सहनी पसीना ख़ून थकन आबले शकेबाई 'अजीब चीज़ है यारो मज़ाक़-ए-कोहकनी बुतों को तोड़ना सदियों से जिन का ईमाँ था शि'आर बन गया उन का मज़ाक़-ए-दिल-शिकनी हसीन जिस्म हैं शो-केस में सजाए हुए ख़रीदा जाता है अर्ज़ां वक़ार-ए-गुल-बदनी 'अजीब शोर था ज़ाग़-ओ-ज़ग़न की महफ़िल में सदा-ए-ताइर-ए-शीरीं नहीं किसी ने सुनी हर एक सम्त से बौनों ने संगसार किया बुलंद-क़ामती मेरे लिए 'अज़ाब बनी