इक़रार का मतलब हो कि इंकार के मा'नी कोई तो हो समझे मिरी गुफ़्तार के मा'नी उस जैसा कोई हो तो कहे उस की मिसालें हो यार सा कोई तो करे यार के मा'नी ये जिस्म दिल-ओ-जाँ तो हैं बिन माँगे ही तेरे फिर क्या हैं तिरे दस्त-ए-तलबगार के मा'नी इक वो कि उठाता गया बुनियाद बराबर इक मैं कि समझता गया दीवार के मा'नी बचपन है जवानी है बुढ़ापा है ये क्या है मरना ही अगर है तो फिर अदवार के मा'नी फूलों को फलों को सर-ए-अफ़्कार सजाया या'नी कि किए यूँ लब-ओ-रुख़्सार के मा'नी जाता है तो जाते हुए दिल को भी जला जा जब तू ही न ठहरेगा तो घर-बार के मा'नी हर चीज़ यहाँ अपने लवाज़िम की है मुहताज साहब ही न ठहरोगे तो दस्तार के मा'नी ऐ काश कि जिस के लिए कहता हूँ मैं 'ताहिर' वो मुझ को बताए मिरे अशआ'र के मा'नी