तजल्ली तूर की हर सू अयाँ है मगर ज़ौक़-ए-कलीमाना कहाँ है यही है रहबरी ऐ रहनुमाओ न मंज़िल है न मंज़िल का निशाँ है लहू रोता है जो औरों की ख़ातिर हक़ीक़त में वही दिल शादमाँ है अजब शय है रबाब-ए-ज़ि़ंदगी भी कभी नग़्मा कभी आह-ओ-फ़ुग़ाँ है अगर वक़्फ़-ए-मोहब्बत हो तो ने'मत नहीं तो ज़िंदगी बार-ए-गराँ है करिश्मा है ये तेरी बे-रुख़ी का ज़मीं दुश्मन फ़लक ना-मेहरबाँ है ख़िरद की राह में बर्ग-ए-गुल-ए-तर जुनूँ की राह में संग-ए-गिराँ है सुन ऐ बेदाद-गर बेगाना-ख़ू सुन ये ख़ामोशी भी इक तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ है मुनव्वर है बशर का ज़ेहन लेकिन हरीम-ए-दिल अभी ज़ुल्मत-निशाँ है गुलिस्ताँ की फ़ज़ा अब भी न बदली वही गुलचीं वही बर्क़-ए-तपाँ है रिहाई क़ैद से बद-तर है या'नी दिल-ए-ताइर असीर-ए-आशियाँ है मिटाने से कहाँ मिटती है 'साबिर' ये उर्दू 'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की ज़बाँ है