ताक़त नहीं है तेरे परों में उड़ान की रह कर ज़मीं पे सोच न तू आसमान की वो टूट जाएगा कभी झुकने न पाएगा विर्से में उस ने पाई है फ़ितरत चटान की गुज़री है उम्र सारी ही घर में किराए के हसरत ही दिल में रह गई ज़ाती मकान की मुहताज दाने दाने को यारो किसान है हाकिम को है पड़ी हुई अपने लगान की 'साहिल' उठो कि सोने का वक़्त अब नहीं रहा कानों में गूँजती हैं सदाएँ अज़ान की