वो एक शख़्स जो इतना उदास लगता है न जाने क्यों वो मिरे दिल के पास लगता है चमन में रंग फ़ज़ाओं ने जब से है बदला हर एक चेहरे पे ख़ौफ़-ओ-हिरास लगता है यूँ ग़ौरो-ओ-फ़िक्र के दरिया मैं पी चुका फिर भी मिरा वजूद क्यों सदियों की प्यास लगता है मिरा रफ़ीक़ भी अब जा मिला रक़ीबों से बहुत ज़हीन है मौक़ा-शनास लगता है धड़कने दिल जो लगा बेकली सी है तारी जिगर के कोने में उन का निवास लगता है ख़बर है गर्म कि महफ़िल में वो भी आएँगे यक़ीन कम है ज़ियादा क़यास लगता है हो रूह खोखली तारीक हो ज़मीर अगर बदन भी देखिए ख़ाली गिलास लगता है बरहना कौन नहीं है यहाँ पे ऐ 'इमरान' अगरचे जिस्म पे सब के लिबास लगता है