तमाम हुस्न-ए-जहाँ का जवाब हो के रहा जो दर्द दिल से उठा आफ़्ताब हो के रहा वो बारगाह-ए-जुनूँ है नसीब-ए-इश्क़-ए-वफ़ा ये दिल ये शौक़ नज़र-बारयाब हो के रहा वही सफ़र है वही रस्म-ए-आबला-पाई यक़ीन-ए-राह मिरा कामयाब हो के रहा बहुत अज़ीज़ न क्यूँ हो कि दर्द है तेरा ये दर्द बढ़ के रहा इज़्तिराब हो के रहा अजीब चीज़ है ये शौक़-ए-आरज़ू-मंदी हयात मिट के रही दिल ख़राब हो के रहा