तमाम उम्र यूँ किया कि ख़्वाब में मगन रहे समुंदरों का अज़्म था सराब में मगन रहे हक़ीक़तों के शहर की हिकायतें कुछ और थीं कमाल था कि हम फ़क़त किताब में मगन रहे धुआँ उठा किया मचल मचल के सहन-ओ-बाम से चराग़ थे कि शाम के शबाब में मगन रहे ख़ुशी के नाम पर तमाम उम्र यूँ गुज़र गई नए नए ग़मों के इंतिख़ाब में मगन रहे हमें तो ऐ 'जमील' अपनी ज़ात ही निगल गई वो और थे जो साक़ी-ओ-शराब में मगन रहे