तन्हा न दिल ही लश्कर-ए-ग़म देख टल गया इस मारके में पा-ए-तहम्मुल भी चल गया हैं गर्म-ए-गुफ़्तुगू गुल ओ बुलबुल चमन के बीच होगा ख़लल सबा जो कोई पात मिल गया उस शम्अ-रू से क़स्द न मिलने का था हमें पर देखते ही मोम-सिफ़त दिल पिघल गया मुनइम तू याँ ख़याल-ए-इमारत में खो न उम्र ले कौन अपने साथ ये क़स्र-ओ-महल गया लागी न ग़ैर-ए-यास हिना-ए-उमीद हाथ दुनिया से जो गया कफ़-ए-अफ़्सोस मल गया उस राह-रौ ने दम में किया तय रह-ए-अदम हस्ती के संग से जो शरर सा उछल गया देखा हर एक ज़र्रे में उस आफ़्ताब को जिस चश्म से कि बे-बसरी का ख़लल गया गुज़री शब-ए-शबाब हुआ रोज़-ए-शेब अख़ीर कुछ भी ख़बर है क़ाफ़िला आगे निकल गया क़ाबिल मक़ाम के नहीं 'बेदार' ये सराए मंज़िल है दूर ख़्वाब से उठ दिन तो ढल गया