तेरे हैरत-ज़दगाँ और कहाँ जाते हैं कहिए गर आप से जाते हैं तो हाँ जाते हैं वे नहीं हम कि तिरे जौर से उठ जाते हैं जी है जब लग नहीं ऐ जान-ए-जहाँ जाते हैं कौन वो क़ाबिल-ए-कुश्तन है बताओ हम को आप जो उस पे लिए तीर-ओ-कमाँ जाते हैं ज्यूँ नगीं रू-सियही नाम से याँ हासिल है नामवर वे हैं जो बेनाम-ओ-निशाँ जाते हैं संग-ए-हस्ती से कि था माने-ए-राह-ए-मक़्सूद जस्त कर मिस्ल-ए-शरर गर्म रवाँ जाते हैं तुझ को फ़हमीद कहाँ शैख़ कि समझे ये रम्ज़ वाँ नहीं बार-ए-मलक यार जहाँ जाते हैं मुझ को उस तिफ़्ल-ए-परी-रू ने किया दीवाना होश से देख जिसे पीर ओ जवाँ जाते हैं ग़ैर-ए-जौहर नहीं ए'राज़ से उन को कुछ काम रंग-ओ-बू पर नहीं साहिब-नज़राँ जाते हैं ख़्वाब 'बेदार' मुसाफ़िर के नहीं हक़ में ख़ूब कुछ भी है तुझ को ख़बर हम-सफ़राँ जाते हैं