तर्ज़-ए-क़ुदसी में कभी शेवा-ए-इंसाँ में कभी हम भी इक चीज़ थे इस आलम-ए-इम्काँ में कभी रंज में रंज का राहत में हूँ राहत का शरीक ख़ाक साहिल में कभी मौज हूँ तूफ़ाँ में कभी दिल में बे-लुत्फ़ रही ख़ार-ए-तमन्ना की ख़लिश नोक बन कर न रहा ये किसी मिज़्गाँ में कभी वार करते ही भरा ज़ख़्म में क़ातिल ने नमक तेग़ पर हाथ कभी है तो नमक-दाँ में कभी ख़िज़्र से मैं ने जो कीं जोश-ए-जुनूँ की बातें ऐसे निकले कि न आए थे बयाबाँ में कभी अल्लह अल्लह रे तिरी शोख़-बयानी ऐ 'दाग़' सुस्त इक शे'र न देखा तिरे दीवाँ में कभी