उस शोख़ का हम ने जो कभी नाम लिया है वो हूक उठी है कि जिगर थाम लिया है लहराते हुए शम्अ' के शो'ले की ज़बाँ से परवानों ने जल जाने का पैग़ाम लिया है महफ़िल से तिरी जब किया उठने का इरादा नज़रों ने तिरी दामन-ए-दिल थाम लिया है अब देखिए इस शौक़ का अंजाम भी क्या हो साक़ी से छलकता हुआ इक जाम लिया है बिछड़े हुए रिंदान-ए-बला-नोश के ग़म में अश्क आँखों में भर आए हैं जब जाम लिया है बे-वज्ह नहीं आज ये आँखों में नमी सी अश्कों से 'रियाज़' आप ने कुछ काम लिया है