तसव्वुर में तिरे जब डूब जाता हूँ कभी दरिया कभी सहरा में होता हूँ तिरे एहसास को पाने की शिद्दत में ख़यालों में नई दुनिया बसाता हूँ उजाले दरमियाँ रह कर भी जान-ए-मन अकेला और तन्हा ख़ुद को पाता हूँ लगा कर दाव पर फिर ज़िंदगी अपनी जुआरी बन मुक़द्दर आज़माता हूँ जफ़ाओं के भरे पुर-ख़ार गुलशन में वफ़ाओं चाहतों का घर बनाता हूँ 'अनीस' आ के मिरे अरमान पुर कर दे दिए सा जगमगाता टिमटिमाता हूँ