तौर बिगड़े हैं निगाह-ए-हुस्न-ए-आलमगीर के क्यूँकि अब जौहर खुले हैं आह की तासीर के वो भुला सकते नहीं मेरी वफ़ाओं को कभी नक़्श होते हैं दिलों पर शोख़ी-ए-तहरीर के कहकशाँ क़ौस-ए-क़ुज़ह गुल नज्म ख़ुर्शीद-ओ-क़मर अक्स हैं ये भी तुम्हारे हुस्न की तनवीर के अब नहीं समझे तो कब समझेंगे तौर-ए-दर्द-ए-दिल ऐसे ही होते हैं तेवर मौत की तस्वीर के इश्क़ की फ़ितरत ही जब मिनजुमला-ए-आफ़ात है किस लिए शिकवे करें हम कातिब-ए-तक़दीर के कुछ तबस्सुम भी वही है कुछ तकल्लुम भी वही पाए हैं अंदाज़ ग़ुंचों ने तिरी ता'मीर के राएगाँ जाती रही हर एक कोशिश इश्क़ में पस्त कर डाले गए सब हौसले तदबीर के