उन की बज़्म-ए-नाज़ का समझे नहीं दस्तूर हम इस लिए ज़ब्त-ए-मोहब्बत पर रहे मजबूर हम हैफ़ उस दीवानगी पर जिस से रुस्वा हुस्न हो हाए वो महबूब जिस से हो गए मशहूर हम आँख को ज़ौक़-ए-तजल्ली दिल को इरफ़ान-ए-कमाल आप की किस किस इनायत के हुए मशकूर हम कुछ बदल ऐ हुस्न ये तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल कुछ बदल वर्ना फिर जारी करेंगे मस्लक-ए-मंसूर हम उन के जल्वे से हो ताबिंदा निगाह-ए-शौक़ अगर ज़र्रे ज़र्रे को बना डालेंगे रश्क-ए-तूर हम मुतमइन दिल याद से आँखें तसव्वुर से निहाल अब नहीं होंगे हलाक-ए-क़िस्मत-ए-महजूर हम 'जौहर' इस माहौल में उर्दू की ख़िदमत फ़र्ज़ है यूँ नहीं इरफ़ान-ए-फ़न में ज़र्रा भर मा'ज़ूर हम