तय हो नहीं सके अभी दो-चार मील भी और चुभ रही है पाओं में जूते की कील भी अफ़्सोस इन परिंदों को कैसे बताऊँ मैं इक रोज़ सूख जाएगी यादों की झील भी क्वांटम की कार-गाह-ए-अजीब-ओ-ग़रीब में इक दायरा तिकोन भी है मुस्ततील भी मुंसिफ़ तो ख़ैर पहले ही दुश्मन के हक़ में थे मेरे ख़िलाफ़ हो गए मेरे वकील भी 'अरमान' सब्ज़ बाग़ कुछ ऐसे दिखाए हैं चलने लगे हैं साथ मिरे संग-ए-मील भी