ताज़गी हर शय पे आई मौसम-ए-बरसात में खिल उठा ज़ख़्म-ए-जुदाई मौसम-ए-बरसात में कैसे मुर्दा लोग फिर से ज़िंदा होंगे देख लो दी ज़मीनों ने गवाही मौसम-ए-बरसात में दुश्मनों को एक कर दे रब की क़ुदरत बे-मिसाल फ़स्ल-ए-बाराँ धूप लाई मौसम-ए-बरसात में अब्र तू इंसाँ के जैसा अद्ल से ग़ाफ़िल न हो क्या ज़मीं अपनी पराई मौसम-ए-बरसात में ठंडी पुरवाई चली तो उन की मौज-ए-ज़ुल्फ़ भी गाल के साहिल तक आई मौसम-ए-बरसात में सोंधी सोंधी सी महक आई तो याद आया हमें आप का दस्त-ए-हिनाई मौसम-ए-बरसात में वक़्त जिस के साथ है तू भी उसी के साथ चल गर्मियों की कर बुराई मौसम-ए-बरसात में घन-गरज कर दाद देते हैं तुम्हें बादल 'नबील' क्या ग़ज़ल तुम ने सुनाई मौसम-ए-बरसात में