तेरी दहलीज़ पर इस को मुक़द्दस मो'तबर जाना

तेरी दहलीज़ पर इस को मुक़द्दस मो'तबर जाना
मगर जब आए मैदाँ में तो कब फिर सर को सर जाना

यही अंदाज़ तो अहसन को असफ़ल करने वाला है
फ़क़त खाना कमाना ऐश करना और मर जाना

हक़ीक़ी इश्क़ था जिस ने रखा तारीख़ में ज़िंदा
किसी का दो पहाड़ों पर इधर जाना उधर जाना

तुम्हारी मुंतज़िर रहती हैं बूढ़ी शाख़ें शिद्दत से
परिंदे देर से मत शाम को सू-ए-शजर जाना

मोहब्बत करने वालों के भी क्या अंदाज़ होते हैं
कभी आँधी से लड़ जाना कभी आहट से डर जाना

वहाँ बच्चों के चेहरे देख कर कुछ याद आएगा
हमारे घर जला कर तुम को भी है अपने घर जाना

पढ़ो पहले 'नबील' इक उम्र फिर थामो क़लम अपना
ज़रूरी है छलकने के लिए अंदर से भर जाना


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