उर्दू हो या मिस्री हो कितनी मीठी लगती हो फूलों का दिल दुखता है काँटों पर जब चलती हो चाँद से तुम को क्या निस्बत छत पर राह टहलती हो शौक़ निराले हैं सारे फूल से शबनम चुनती हो कितनी नाज़ुक और मासूम काँच की गुड़िया जैसी हो तुम को छूना ना बाबा चलती फिरती बिजली हो क़तरा क़तरा शाहिद है रग रग में तुम बहती हो रंग भी तुम में ख़ुशबू भी फूल हो या फिर तितली हो जब उन की ता'बीर नहीं ख़्वाबों में क्यों आती हो कितना सस्ता है 'शादाब' और तुम कितनी महँगी हो