उस की दुज़दीदा-निगाही देखना अच्छा लगा भीड़ में इक अजनबी का सामना अच्छा लगा जिस की तस्वीर-ए-तसव्वुर ज़ेहन में महफ़ूज़ है जादा-ए-उलफ़त में उस को ढूँढना अच्छा लगा घोलना कानों में रस शीरीनी-ए-गुफ़्तार से रूह-परवर उस का हँसना बोलना अच्छा लगा मुर्तइश होता है जिस को देख कर तार-ए-नफ़स उस का ज़ुल्फ़ ख़म-ब-ख़म का खोलना अच्छा लगा दिल से दिल को राह होती है ये है उस का सुबूत जाते जाते उस का मुड़ कर देखना अच्छा लगा वज्द-आवर था गुल-ओ-बुलबुल का रब्त-ए-बाहमी ग़ुंचा-ओ-गुल से चमन में खेलना अच्छा लगा है जहान-ए-रंग-ओ-बू में हुस्न जिस का इंतिख़ाब उस का होना बज़्म में जल्वा-नुमा अच्छा लगा मेरे सीने में धड़कता है दिल-ए-दर्द-आश्ना इस लिए टूटे हुए दिल जोड़ना अच्छा लगा मुनअ'किस हर चीज़ में होता है 'बर्क़ी' जिस का अक्स उस का चेहरा आइना-दर-आइना अच्छा लगा