तेरे अफ़्कार के शो'लों की तपिश माँद नहीं By Ghazal << उन्वान बदल गए हैं फ़साने ... सहरा की वुसअ'तों में ... >> तेरे अफ़्कार के शो'लों की तपिश माँद नहीं फिर भी महफ़िल में ठिठुरने की रविश बाक़ी है मुंतज़िर बज़्म है कब से कि नया दौर चले वक़्त की गर्द में मस्तूर मगर साक़ी है क़ब्र से आई निदा प्यास में शिद्दत हो अगर सब मयस्सर हो यही शेवा-ए-आफ़ाक़ी है Share on: