तिरे होंटों में क्या बिजली छुपी है बदन में रौशनी सी भर गई है सभी अपने बदन में छुप रहे हैं घरों में कुछ 'अजब सी बे-घरी है इजाज़त हो तो ख़ुद को पेश कर दूँ तिरी रातों में सूरज की कमी है मिले हम यूँ तो पहली बार लेकिन लगा ऐसा पुरानी दोस्ती है बदल जाता है अब हर रोज़ चेहरा मिरी तस्वीर कैसी हो गई है मिरे हाथों में है ख़ुशबू का पैकर बदन में आग सी क्यों लग रही है ब-नाम-ए-ज़िंदगी 'जमशेद' अब तो कोई अंजान सी शय रह गई है