तिरे ख़्वाबों में ढलता जा रहा है By Ghazal << था परिंदा किसी उड़ान में ... तेरा रस्ता भी देखता है बह... >> तिरे ख़्वाबों में ढलता जा रहा है मिरा चेहरा बदलता जा रहा है तुझे तो रोक रक्खा है किसी ने मगर ये दिन कि ढलता जा रहा है अकेली तो नहीं हूँ मैं सफ़र में वो मेरे साथ चलता जा रहा है धनक मिट्टी में घुलती जा रही है वो बारिश में पिघलता जा रहा है Share on: