तिरे नक़्श-ए-पा हों जिस में वो डगर कहाँ से लाऊँ हो हमेशा साथ तेरा वो सफ़र कहाँ से लाऊँ कोई ऐश है दवामी न क़रार कोई दाएम न हो जिस की शाम कोई वो सहर कहाँ से लाऊँ वो ख़ुदी कहाँ से लाऊँ तिरे जब्र को जो तोड़े तह-ए-तेग़ सर झुका दे मैं वो सर कहाँ से लाऊँ परे आसमाँ से पहुँचूँ यही आरज़ू है लेकिन वो तड़प कहाँ से लाऊँ मैं वो पर कहाँ से लाऊँ दर-ए-दिलरुबा पे 'जौहर' भला कैसे पहुँचूँ आख़िर मैं शिकस्ता-पा हूँ आशिक़ वो सफ़र कहाँ से लाऊँ