तिरे विसाल का दिन भी गुज़रने वाला है यहाँ पे कौन सा मंज़र ठहरने वाला है मैं रोज़ ख़्वाब में अब देखता हूँ तलवारें मुझे ज़रूर कोई क़त्ल करने वाला है कई तरफ़ से इधर तीर आते रहते हैं कहाँ हमारा कोई ज़ख़्म भरने वाला है वो एक शख़्स जो दरिया से बढ़ के है गहरा कोई अब उस की भी तह में उतरने वाला है तुम्हारा जीना भी किस काम का है ऐ 'साक़िब' यहाँ पे कौन भला तुम पे मरने वाला है