तेरी गली को छोड़ के जाना तो है नहीं दुनिया में कोई और ठिकाना तो है नहीं जी चाहता है काश वो मिल जाए राह में हालाँकि मोजज़ों का ज़माना तो है नहीं इस घर में उस के नाम का कमरा है आज भी जिस को कभी भी लौट के आना तो है नहीं शायद वो रहम खा के मिरी जान बख़्श दे क़ातिल है कोई दोस्त पुराना तो है नहीं अश्कों को 'रूही' ख़र्च करो देख-भाल के आँखों के पास कोई ख़ज़ाना तो है नहीं