तेरी गिरह में माल फ़क़त चार दिन का है जज़्बों में इश्तिआ'ल फ़क़त चार दिन का है बाम-ए-उरूज पर भी कभी आऊँगा ज़रूर हम-दम मिरा ज़वाल फ़क़त चार दिन का है किस को ख़बर सहाब कहाँ जा के रोएगा मौसम ये बर्शगाल फ़क़त चार दिन का है तेरी समाअतों के हुनर को मिले दवाम मेरा सुख़न कमाल फ़क़त चार दिन का है हम इश्क़-ए-ला-ज़वाल के दाइम मरीज़ हैं अच्छा ये हाल-चाल फ़क़त चार दिन का है गर्दन कटा के हम यही कहते रहे 'वली' ज़ख़्मों का इंदिमाल फ़क़त चार दिन का है