तिरी याद में जो गुज़ारा गया है वही वक़्त अच्छा हमारा गया है भला और क्या अपना-पन वो दिखाए तिरा नाम ले कर पुकारा गया है तुम्हें मेरी हालत पता क्या चलेगी मिरा जो गया कब तुम्हारा गया है तुम्हें इश्क़ का आइना मान कर के मुक़द्दर को अपने सँवारा गया है अजब है मोहब्बत का मैदान यारो न जीता गया है न हारा गया है लिखा रेत पर नाम मैं ने तुम्हारा नदी में भी चेहरा निहारा गया है है मेरी भी आदत तुम्हारे ही जैसी हर इक रंग मुझ पे तुम्हारा गया है