था कहाँ लिखना उसे लेकिन कहाँ पर लिख दिया मैं ज़मीं का हर्फ़ मुझ को आसमाँ पर लिख दिया जिस के पढ़ने से रही क़ासिर भँवर की आँख भी कौन जाने क्या हवा ने बादबाँ पर लिख दिया कुछ तो कर दरिया मिरे इन को डुबो या पार कर कश्तियों ने अपना दुख आब-ए-रवाँ पर लिख दिया बैठ कर अब ज़र्द पत्तों के वरक़ पल्टा करो तब्सिरा लिखने को मौसम ने ख़िज़ाँ पर लिख दिया हश्र में ख़ाना-ख़राबी को ठिकाना चाहिए उस ने मेरा नाम भी अपने मकाँ पर लिख दिया और बा-मा'नी हुआ तश्कीक का पिछ्ला निसाब क्या कहूँ अहल-ए-यकीं ने क्या गुमाँ पर लिख दिया तुम इसे कह लो हिसाब-ए-दोस्ताँ-दर-दिल 'फ़ज़ा' हम ने अपना नफ़अ' भी लौह-ए-ज़ियाँ पर लिख दिया