था ज़िंदगी से प्यार तो बीमार क्यों हुए या'नी असीर-ए-गेसू-ए-दिल-दार क्यों हुए वीरानियों का और भी एहसास बढ़ गया नज़रों के सामने गुल-ओ-गुलज़ार क्यों हुए खोलें ये राज़ अब तिरी ज़ुल्फ़ों के पेच-ओ-ख़म हम काविश-ए-जुनूँ में गिरफ़्तार क्यों हुए बेबाकी-ए-निगाह के मुजरिम हैं हम मगर जल्वे हरीफ़-ए-लज़्ज़त-ए-दीदार क्यों हुए मिन्नत-पज़ीर शाना-ए-तदबीर के जो हैं तक़दीर के वो गेसू-ए-ख़मदार क्यों हुए मौज-ए-हवा-ए-शौक़ ने हम को किया ख़राब जीने से क्या बताएँ कि बेज़ार क्यों हुए एहसास-ए-तल्ख़ी-ए-ग़म-ओ-आलाम अल-अमाँ दीवाना क्यों न हम हुए हुशियार क्यों हुए कुछ और बढ़ गई है गिराँ-बारी-ए-हयात शर्मिंदा-ए-नवाज़िश-ए-अग़्यार क्यों हुए पादाश-ए-जुर्म में जिसे देना पड़ा है दिल उस की नज़र के आप गुनहगार क्यों हुए हर हर नफ़स है अब तो सज़ा-ए-दिल-ओ-नज़र इतना मिरे क़रीब ये अफ़्कार क्यों हुए अपने को देख और फिर अपनी नज़र को देख हम से न पूछ बे-ख़ुद-ओ-सरशार क्यों हुए 'नासिर' वो ज़िंदगी वो लड़कपन की ज़िंदगी हम उस हसीन ख़्वाब से बेदार क्यों हुए