थे जो मशहूर वफ़ाओं में सितमगर निकले जिन से ख़तरा था मोहब्बत के पयम्बर निकले कोशिश-ए-ज़ब्त न काम आई तो कुछ बस न चला चंद क़तरे मिरे अश्कों के समुंदर निकले वक़्त क्यों ख़ाक-नशीनों का उड़ाता है मज़ाक़ शायद इन में कोई हम-औज-ए-सिकंदर निकले ए'तिराफ़ इस का हर इक दौर में दुनिया ने किया कि जो मुफ़्लिस थे वही दिल के तवंगर निकले ज़ुल्मत-ए-शाम-ए-शब-ए-ग़म का ये आलम है 'ख़लीक़' मुँह छुपाए हुए जैसे मह-ओ-अख़्तर निकले