थे वो क़िस्से मगर सराब के थे By Ghazal << वक़्त अजीब चीज़ है वक़्त ... था आसमान पर जो सितारा नही... >> थे वो क़िस्से मगर सराब के थे जाने वाले ख़याल-ओ-ख़्वाब के थे लम्हा लम्हा किसी की यादें थीं रोज़-ओ-शब थे मगर अज़ाब के थे उस का चेहरा था और शीशों में अक्स खिलते हुए गुलाब के थे गर्द-ए-रह थी मियान-ए-मंज़िल-ओ-दिल धुँदले धुँदले नुक़ूश ख़्वाब के थे Share on: