ठिकाना है कहीं जाएँ कहाँ नाचार बैठे हैं इजाज़त जब नहीं दर की पस-ए-दीवार बैठे हैं ये मतलब है कि महफ़िल में मनाए और मन जाएँ वो मेरे छेड़ने को ग़ैर से बेज़ार बैठे हैं ख़रीदार आ रहे हैं हर तरफ़ से नक़्द-ए-जाँ ले कर वो यूसुफ़ बन के बिकने को सर-ए-बाज़ार बैठे हैं अचानक ले न लूँ बोसा ये खटका उन के दिल में है मिरे पहलू में बैठे हैं मगर होश्यार बैठे हैं तुम्हारे आशिक़ों में बे-क़रारी क्या ही फैली है जिधर देखो जिगर थामे हुए दो-चार बैठे हैं क़यामत है सितम मुर्दे पे भी उन को गवारा है मिरा लाशा उठाने के लिए अग़्यार बैठे हैं लब-ए-बाम आ के दिखला वो तमाशा तूर का तुम भी बड़े मौक़े से दर पर तालिब-ए-दीदार बैठे हैं 'असर' क्यूँ-कर न जानूँ उस के दर को क़िब्ला-ए-आलम उसी जानिब कई रुख़ काफ़िर ओ दीं-दार बैठे हैं