तीरा-बख़्ती तंग-दस्ती सब मिटा सकता हूँ मैं अपनी दुनिया आप चाहूँ तो बना सकता हूँ मैं गुल ही क्या ख़ारों की फ़स्लें भी उगा सकता हूँ मैं तुम अगर चाहो तो ये मंज़र दिखा सकता हूँ मैं मुझ को ये भी फ़ख़्र है हासिल चराग़-ए-इश्क़ की एक लौ से सैंकड़ों शमएँ जला सकता हूँ मैं मेरे पैकर को मुज़य्यन आप कर दें तो अभी लाइनें कुछ खींच कर ख़ाका बना सकता हूँ मैं आप पर इतलाक़ है रू-ए-सुख़न या'नी 'ज़िया' आप फ़रमाएँ किसे अपना बना सकता हूँ मैं