उन्हें मक़्सूद अगर तर्क-ए-वतन की आज़माइश है तो हम समझेंगे अब रस्म-ए-कुहन की आज़माइश है वो क्या कोई सिकंदर हैं जो ये ए'लान करते हैं हमारी फ़र्द में दार-ओ-रसन की आज़माइश है मोहिब्बान-ए-वतन हैं हम हमारी आज़माइश है हमें दरकार ख़ुद नंग-ए-वतन की आज़माइश है सुख़न-दाँ को भी शायद इम्तिहाँ मक़्सूद है अपना जो हर हर लफ़्ज़ में बाबा-ए-फ़न की आज़माइश है 'ज़िया' के ज़ेहन में ता'क़ीद-ए-लफ़्ज़ी है तो हैरत क्या उसे भी अपने आ'ला फ़िक्र-ओ-फ़न की आज़माइश हे