तिरे बिन किस तरह बसर होगी इस शब-ए-ग़म की क्या सहर होगी इतना मायूस हूँ जुदाई से वो भी मायूस किस क़दर होगी ज़िंदगी हो कि रात हो यारो इक न इक रोज़ तो सहर होगी यूँही दिन भर फिरेंगे आवारा यही तदबीर रात भर होगी 'रश्क' दुनिया को देखने वाली तेरी शायद नई नज़र होगी