तिरे करम से तिरी बे-रुख़ी से क्या लेना मिरे ख़ुलूस-ए-वफ़ा को किसी से क्या लेना सुकून-ए-क़ल्ब न आसाइश-ए-हयात नसीब ये ज़िंदगी है तो इस ज़िंदगी से क्या लेना तू अपनी वज़्अ को रुसवा-ए-अर्ज़-ए-हाल न कर किसी को तेरे ग़म-ए-बे-बसी से क्या लेना ख़राब-ए-ज़ीस्त हूँ लेकिन तिरी ख़ुशी के सिवा तिरे निसार मुझे ज़िंदगी से क्या लेना तू मेरी ख़ू-ए-मोहब्बत बदल नहीं सकता ज़माने मुझ को तिरी बे-रुख़ी से क्या लेना सितम है दम जो मिरी दोस्ती का भरते थे वो कह रहे हैं तिरी दोस्ती से क्या लेना हमीद अस्ल में इक ग़म को है सबात यहाँ जिसे दवाम नहीं उस ख़ुशी से क्या लेना