तीरगी हो तो क्या करे कोई शम्अ' बन कर जला करे कोई ख़ुद को ग़म-आश्ना करे कोई दर्द-ए-दिल फिर सिवा करे कोई धज्जियाँ कर के जेब-ओ-दामाँ की हक़ जुनूँ का अदा करे कोई दश्त-ए-वहम-ओ-गुमाँ में फिर अपना ख़िज़्र को रहनुमा करे कोई कैफ़-पर्वर्दा दिल-नशीं यादें दिल से कैसे जुदा करे कोई दिल से मजबूर है 'सहर' अपने तर्क कैसे वफ़ा करे कोई