तिरी ख़ुशबू तिरा लहजा मैं कहाँ से लाऊँ तू बता दे तिरे जैसा में कहाँ से लाऊँ चाँद को घेर के रखते हैं सितारे हर शब फिर भला चाँद को तन्हा मैं कहाँ से लाऊँ चश्म-ए-तर में भी रहे और भरम भी रख ले ऐसा ठहरा हुआ दरिया मैं कहाँ से लाऊँ उस की ख़्वाहिश है तअल्लुक़ का कोई नाम न हो ऐसा बे-नाम सा रिश्ता मैं कहाँ से लाऊँ जज़्ब कर ले मुझे ख़ुद में जो समा ले मुझ को ख़ुश्कियों में वो जज़ीरा मैं कहाँ से लाऊँ खींच लाए जो गुनाहों के समुंदर से मुझे इक नदामत का वो क़तरा मैं कहाँ से लाऊँ