तितलियाँ जुगनू शजर ख़ुशबू परिंदे छोड़ कर हँस रही हूँ ख़्वाब सारे मैं अधूरे छोड़ कर जिस की आँखों ने लिखा था आख़िरी नौहा मिरा वो गया भी तो गया है सब से पहले छोड़ कर ढूँढती फिरती हूँ अपने आप को कुछ इस तरह आ गई हूँ जिस तरह मैं ख़ुद को पीछे छोड़ कर काटने हैं रतजगे पढ़ते हुए दीवान-ए-मीर जागना है उम्र भर नींदें सिरहाने छोड़ कर रह गईं वीरान कच्ची सी सड़क पर हिचकियाँ चल पड़ी गाड़ी किसी के हाथ हिलते छोड़ कर देख ले मैं ने मुकम्मल कर लिए हैं आख़िरश तू गया था मुझ में अपने नक़्श आधे छोड़ कर