तो आप अपनी ज़बानी सुनाएँ बिस्मिल्लाह असीर अपनी कहानी सुनाएँ बिस्मिल्लाह 'असीर' आप की किस तरह की जवानी थी थी कैसी उस की जवानी सुनाएँ बिस्मिल्लाह दहन से बू-ए-चमन आती है तो आने दें गुलों की शोला-बयानी सुनाएँ बिस्मिल्लाह रबाब नज़्म है या फिर मआ'नी-ए-उल्फ़त वो नज़्म फिर ब-म'आनी सुनाएँ बिस्मिल्लाह पुराने ज़ख़्मों को ताज़ा करें कि हम को ग़ज़ल नई के बा'द पुरानी सुनाएँ बिस्मिल्लाह ख़याल-ए-हिज्र से जिस को थी बे-पनह तकलीफ़ क्यों उस ने हिज्र की ठानी सुनाएँ बिस्मिल्लाह सवाल-ए-इश्क़-ओ-जुनूँ पर ज़बाँ से आप अपनी जवाब-ए-हुस्न-ओ-जवानी सुनाएँ बिस्मिल्लाह तमाम उम्र जो नाज़िल हुए हैं आप पे वो सहीफ़ा-हा-ए-गिरानी सुनाएँ बिस्मिल्लाह लबों को प्यास के कानों पे रख दें और पढ़ कर किताब-ए-तिश्ना-दहानी सुनाएँ बिस्मिल्लाह रुकी हैं मिस्रा-ए-ऊला पे धड़कनें सब की 'असीर' मिस्रा-ए-सानी सानी सुनाएँ अल्लाह