तू मेरे साथ हथेली उठा निकल आए कोई दुआ न सही बद-दुआ' निकल आए कभी-कभार उसे चूम लें तो मुमकिन है हमारे मुँह से भी शुक्र-ए-ख़ुदा निकल आए ख़बर की ताक में बैठे हुए तो चाहेंगे किसी तरह से कोई वाक़िआ' निकल आए यही तो दुख है क़बीला भी ख़ानदान था एक मगर मिज़ाज ही अपने जुदा निकल आए मरे हुओं की तलाशी में हो भी सकता है किसी की जेब से उस का पता निकल आए उठा रहा हूँ यही सोच कर ज़ियाँ पे ज़ियाँ किसी की ख़ैर किसी का भला निकल आए मुझे ख़बर है कि ये लोग लौट जाएँगे अगर यहाँ से कोई रास्ता निकल आए नया सफ़र हो मुबारक मगर करोगे क्या वहाँ भी ऐसी ही आब-ओ-हवा निकल आए निकल रहा हूँ मैं उस दिल से इस तरह 'साहिर' कि जैसे काट के क़ैदी सज़ा निकल आए