वैसे तो कम ही मियाँ अहल-ए-जुनूँ रोते हैं देखने वाले समझते हैं कि ख़ूँ रोते हैं पूछने वाले ब-ज़िद हैं कि बताया जाए रोने वालों को नहीं याद कि क्यूँ रोते हैं मुझ से मत पूछ कि तफ़रीक़ नहीं कर सकता मैं तो हँसते हुए लोगों को कहूँ रोते हैं वो बहुत ख़ुश है नया घर है नया शहर मगर गाँव में उस की हवेली के सुतूँ रोते हैं तुम को हम जैसे मगर ख़ुश ही नज़र आएँगे ये जो हम जैसे हैं आँखों के दरूँ रोते हैं उस की आँखों को कहाँ आता था रोना 'साहिर' मैं ने फिर रो के दिखाया था कि यूँ रोते हैं