तू मुझे सुनती रही और मैं तुझे पढ़ता रहा शहर में अपनी मोहब्बत का बहुत चर्चा रहा वैसे कितनी लड़कियों ने आज़माई क़िस्मतें और मेरी शायरी में एक ही चेहरा रहा तीर नज़रों से चला मैदान-ए-दिल घायल हुआ इक अकेला शख़्स सारे दर्द को सहता रहा तेज़ झोंकों ने हवा के गुल किए कितने चराग़ फिर भी अंधेरे में दिल बन के दिया जलता रहा सर्दियाँ आ के गईं वो सोएटर बुनती रही मैं दिसम्बर जनवरी में ठण्ड से लड़ता रहा