तू वज़’ पर अपनी क़ाइम रह क़ुदरत की मगर तहक़ीर न कर दे पा-ए-नज़र को आज़ादी ख़ुद-बीनी को ज़ंजीर न कर गो तेरा 'अमल महदूद रहे और अपनी ही हद मक़्सूद रहे रख ज़ेहन को साथी फ़ितरत का बंद उस पे दर-ए-तासीर न कर बातिन में उभर कर ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ ले अपनी नज़र से कार-ए-ज़बाँ दिल जोश में ला फ़रियाद न कर तासीर दिखा तक़रीर न कर तू ख़ाक में मिल और आग में जल जब ख़िश्त बने तब काम चले इन ख़ाम दिलों के उंसुर पर बुनियाद न रख ता'मीर न कर