तुझ से मिल कर इस क़दर अपनों से बेगाने हुए अब तो पहचाने नहीं जाते हैं पहचाने हुए बुत जिन्हें हम ने तराशा और ख़ुदाई सौंप दी आ गए हैं सामने पत्थर वही ताने हुए ख़ल्क़ की तोहमत से छूटे संग-ए-तिफ़्लाँ से बचे ख़ूब थे वो लोग जो ख़ुद अपने दीवाने हुए इस को क्या कहिए कि हम हर हाल में जलते रहे दूरियों में चाँद थे क़ुर्बत में परवाने हुए अपनी सूरत में भी 'ख़ातिर' एक गूना सेहर था आइना-ख़ानों में फ़रज़ाने भी दीवाने हुए