यास क्या क्या न गुल खिलाती है आस बँधती है टूट जाती है याद आती है भूल जाता हूँ भूल जाता हूँ याद आती है बच के तूफ़ाँ से आ गई कश्ती अब किनारे पे डगमगाती है सोना चाहूँ तो नींद उड़ जाए जागता हूँ तो नींद आती है शाम-ए-ग़म चश्म नम है दिल मुज़्तर शम-ए-उम्मीद झिलमिलाती है सुब्ह होती नहीं मसर्रत की शाम-ए-ग़म रोज़ आती जाती है क्या 'गिरामी' खिला है ग़ुंचा-ए-दिल क्यों फ़ज़ा आज गुनगुनाती है