तुझे क्या ख़बर है ओ बे-ख़बर मिरी जान तुझ पे निसार है तिरी शोख़-ओ-शंग अदाओं में मिरी आशिक़ी का ख़ुमार है तू ही जान-ए-जाँ तू ही राज़दाँ तू ही मेरे प्यार की कहकशाँ मिरे दिल के बाग़ में आज-कल तिरे दम से फ़स्ल-ए-बहार है मैं बता सकूँगा भला कहाँ मैं छुपा सकूँगा भला कहाँ मिरा दिल किसी पे फ़िदा हुआ मिरी जाँ किसी पे निसार है न हूँ मुज़्तरिब न हूँ मुतमइन है बड़ी अजीब सी कैफ़ियत है बुलंद-तर मिरी फ़हम से कोई ऐसी सोच-विचार है तू मिरे चमन का गुलाब है तू मिरी वफ़ा का शबाब है न किसी का तुझ सा ख़ुलूस है न किसी का तुझ सा वक़ार है तू मिला है मुझ को जहाँ कहीं मिरे दिल के ग़ुंचे खिले वहीं मिरी ख़ुद-बख़ुद ही झुकी जबीं तू मिरा हसीन निगार है तिरा आज 'साइर'-ए-बे-नवा है उदासियों में घिरा हुआ तिरे ग़म में ऐसे है मुब्तला उसे चैन है न क़रार है