तुझ को बुरा लगेगा मगर सच यही है दोस्त दुनिया तिरे बग़ैर भी अच्छी लगी है दोस्त मैं जिस जगह नहीं था वहाँ भी मिला तुझे ख़ुद को ज़रा सँभाल ये दीवानगी है दोस्त कर के पुरानी बात कोई फ़ाएदा नहीं मालूम है मुझे तिरी दुनिया नई है दोस्त ले अब तिरी गली को रह-ए-आम कर दिया वो दोस्ती थी और ये मिरी दुश्मनी है दोस्त बोझल है तेरी आँख तुझे सोना चाहिए छोटी है रात मेरी कहानी बड़ी है दोस्त 'काशिफ़' ग़ज़ल से लफ़्ज़-ए-ख़सारा निकाल दे ये कोई कारोबार नहीं शायरी है दोस्त